Sunday, 12 February 2023

 


गोली

 यह कहानी है एक गोली की। आपमें से बहुत से लोग इस शब्द से परिचित नहीं होंगे। पर राजा महाराजों की आवश्यकता पूर्ती का यह वह साधन है जिसने लगभग ६०,००० की जनसँख्या का रूप ले लिया था।

कहानी की नायिका चंपा भी एक गोली की पुत्री है और इसलिए जन्म जात गोली है।

गोले -गोली जनसँख्या का वह टुकड़ा है जिसे अपने होने का आभास भी होने नहीं दिया जाता।

दान दहेज़ में प्रथा दर प्रथा इधर से उधर जीवन बीतता है। कभी राजा की सेवा में तो कभी रानी की जी हुजूरी मे।

कहानी के दो अन्य मुख्या किरदारों में "चंपा " के दो नायक हैं ,एक तो अन्नदाता महाराज हैं ,जिनकी वह गोली से कहीं अधिक स्वामिनी है। कहानी का दूसरा नायक है किसुन  जिसके बारे में 4 पंक्ति लिखकर बताना उसका अपमान करना है। क्यूंकि देवताओं का क्या  वर्णन और ऐसा में नहीं कहती, कहते हैं स्वयं आचार्य चतुरसेन।

इस कहानी को संक्षिप्त में कहूँ तो गोलियों की दासता और मजबूरी की एक सच्ची घटना पर आधारित उपन्यास कह सकती हूँ ,परन्तु इसे पूरा पढ़े बिना इसके साथ न्याय नहीं हो सकता।

चंपा जब रुआँसे से मन से कहती है

‘मैं जन्मजात अभागिनी हूँ। स्त्री जाति का कलंक हूँ। परन्तु मैं निर्दोष हूँ, निष्पाप हूँ। मेरा दुर्भाग्य मेरा अपना नहीं है, मेरी जाति का है, जाति-परम्परा का है; हम पैदा ही इसलिए होते हैं कि कलंकित जीवन व्यतीत करें। जैसे मैं हूँ ऐसी ही मेरी माँ थी, परदादी थी, उनकी दादियाँ-परदादियाँ थीं। मैंने जन्म से ही राजसुख भोगा, राजमहल में पलकर मैं बड़ी हुई, रानी की भाँति मैंने अपना यौवन का शृंगार किया। रंगमहल में मेरा ही अदब चलता था। राजा दिन रात मुझे निहारता, कभी चंदा कहता, कभी चाँदनी। राजा मेरे चरण चूमता, मेरे माथे पर तनिक-सा बल पड़ते ही वह बदहवास हो जाता था। कलमुँहे विधाता ने मुझे जो यह जला रूप दिया, राजा उस रूप का दीवाना था, प्रेमी पतंगा था। एक ओर उसका इतना बड़ा राज-पाट और दूसरी ओर वह स्वयं भी मेरे चरण की इस कनी अंगुली के नाखून पर न्यौछावर था।’’

यह पुस्तक और इसकी संपूर्ण कहानी पड़ते वक़्त भय ,रोमांच  और डर से कितनी ही बार मेरा हृदय काँप उठा। अपने साधारण से जीवन पर कई बार पछतावे का एहसास हर मनुष्य को होता है परन्तु इस पुस्तक को पढ़ते हुए मुझे संतुष्टि होने लगी।

आचार्य चतुरसेन  लेखक होने के साथ चिकित्सक भी थे और इसी वजह से राजा रानियों के गलियारे की टोह लेने में उनसे चूक नहीं हुई। राज घरानो के जीवन की विचित्रता बतलाता यह उपन्यास आपको कड़वे सच के गहरे अंधकार में ले जायेगा।

1958 में पहली बार प्रकाशित आचार्य चतुरसेन का यह अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास राजस्थान के रजवाड़ों में प्रचलित गोली प्रथा पर आधारित है। चंपा नामक गोली का पूरा जीवन राजा की वासना को पूरा करने में निकल जाता है और वह मन-ही-मन अपने पति के प्रेम-पार्श्व को तरसती रहती है। लेखक का कहना है, ‘‘मेरी इस चंपा को और उसके श्रृंगार के देवता किसुन को आप कभी भूलेंगे नहीं। चंपा के दर्द की एक-एक टीस आप एक बहुमूल्य रत्न की भाँति अपने हृदय में संजोकर रखेंगे।’’

 

Link to read the book online

https://www.hindikahani.hindi-kavita.com/Goli-Acharya-Chatursen-Shastri.pdf

 

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Dipali