वन में भटक रही सीता के अनुभूति कोष में क्या नहीं है।आरोहण-अवरोहण,सुख-दुख, उन्मेष -निमेष सब कुछ।
धरा की पुत्री,धरा से ही गहरी मित्रता।
अपने परम प्रिय स्वामी या कहुं सर्वस्व के लिए सब कुछ त्याग, सब कुछ खोने या सब पा लेने की राह पर जब चल पढते हैं, तो मनके भावों को उतार चढ़ावों को ,धूप छांव को, प्रेम विरोधाभास को संजोकर लिखी जाती है ऐसी पुस्तकें....
अनामिका जी का लिखा सीता के निकट पहुंचा देगा आपको। आप भी वन -वन यात्रा करेंगे ।जंगल की बरसात से आपके मन पर भी प्रेम और विश्वास के गहरे छींटे पढ़ेंगे।
वृद्ध मातंगी की सेवा में रत सीता को देखकर मुझे उन सभी स्त्रियों की बरबस याद आ गई जो बिना नाम पाए आजीवन घर के बुजुर्गों को समर्पित होती हैं,पर कभी सीता नहीं कहलाई जाती। पुस्तक पढ़कर लगा जैसे मैं अनेकों महिलाओं का जीवन दर्पण देख रही हूं।अपने प्रिय को मनाती उन्हीं को समर्पित, प्रेम से भरपूर कष्ट से मित्रता करती स्त्रियां....
वह सर्वसिद्ध चमत्कारी सीता मां थी ,जो तिनके की ओट में सर्वार्थसिद्धि का रचा महानाट्य सिद्ध कर गई।। जैसे एक सामान्य स्त्री चुप्पी की ओट में सर्वार्थ कार्य सिद्ध कर देती है।
अनामिका जी के माता-पिता बेहद शिक्षित और रामायण को ह्रदय में संजोए रखते थे, तभी बाल मन से ही सीता का जन्म अनामिका के मन में हुआ है।
पिता ने जहां कलम छोड़ी है वहीं उन्होंने उसी सारगर्भिता और प्रेम से उसे पकड़ लिया है।
और सीता के प्रेम में मगन हो एक ऐसा महाकाव्य रच डाला जो वर्षों तक हम सबको मगन रखेगा।
उपन्यास को ही आधुनिक जीवन का महाकाव्य बनाकर इस पुस्तक को अनेक खंडों में बांटा गया है।
खंड 1 गुप्त पत्राचार
खंड-2 सीतायण- कुछ क्षण चित्र
1. बालकांड
2. अयोध्या कांड
3. अरण्यकांड
4. सुंदरकांड
5. लंका कांड
6. निष्कृति खंड
खंड 3- उत्तरायण
पुस्तक में हम हर उस स्त्री से मिल रहे हैं, जो अपने मन के भावों में तैरती उतरती रहती है।
मेरे मन को भाई है सीता की शूर्पणखा को लिखी चिट्ठी।
सच ही तो है ,स्त्री ही अगर स्त्री को नहीं समझेगी तो ...कौन समझेगा ........
प्यार और आभार के साथ
दिपाली
अद्भुत ,अविरल अनुभूति
ReplyDelete